kerala-logo

Maharashtra Elections 2024: पटोले और राउत भिड़े शिंदे Vs फडणवीस भी होना तय; अबकी बार CM पर तय है बवाल


Maharashtra Politics: EXIT POll, फलोदी सट्टा बाजार के अनुमान महाराष्‍ट्र में चाहें सत्‍तारूढ़ महायुति (बीजेपी-शिवसेना-अजित पवार) या विपक्षी महाविकास अघाड़ी (शरद पवार-उद्धव ठाकरे-कांग्रेस) में जिसकी भी जीत का अनुमान व्‍यक्‍त करें लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि यदि महायुति सत्‍ता में दोबारा लौटी तो क्‍या दोबारा एकनाथ शिंदे को सीएम बनने का मौका मिलेगा? इसी तरह का सवाल ये भी है कि यदि महाविकास अघाड़ी यानी एमवीए लौटी तो क्‍या उद्धव ठाकरे की सीएम के रूप में वापसी होगी?
ये सवाल चुनाव में भी उठते रहे हैं लेकिन दोनों ही गठबंधनों ने चुनाव के बाद की बात कहकर चतुराई से इसको टाल दिया था लेकिन अब इस सवाल से सामना करने का वक्‍त आ गया है. इसलिए ही तो वोटिंग के तत्‍काल बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष नाना पटोले ने एमवीए की जीत को लेकर आशा व्‍यक्‍त करते हुए कह दिया कि कांग्रेस के नेतृत्‍व में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनने जा रही है. दरअसल उनका आधार ये है कि एमवीए की तरफ से कांग्रेस सबसे ज्‍यादा 105 सीटों पर चुनाव लड़ी थी इसलिए उनका अनुमान है कि यदि एमवीए को बढ़त मिलती है तो सबसे ज्‍यादा सीटें कांग्रेस ही जीतेगी. अब यदि सरकार एमवीए की बनती है तो सबसे ज्‍यादा सीटें पाने की स्थिति में मुख्‍यमंत्री पद कांग्रेस को मिलना चाहिए. ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि नाना पटोले भी सीएम बनने की इच्‍छा रखते हैं.
उनकी ये बात इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि चुनाव से पहले शरद पवार भी कहते रहे हैं कि सीएम को लेकर फॉर्मूला ये बन सकता है कि सबसे अधिक सीटें जीतने वाले दल को सीएम की कुर्सी मिलनी चाहिए. लेकिन ये बात क्‍या उद्धव ठाकरे की शिवसेना स्‍वीकार करेगी? तभी तो नाना पटोले की बात को उद्धव के विश्‍वस्‍त संजय राउत ने काट दिया. उन्‍होंने साफतौर पर पटोले की बात को खारिज करते हुए कहा कि हम लोग नहीं मानेंगे. नतीजे हमारे पक्ष में आने की स्थिति में एमवीए की बैठक होगी और उसमें ही तय होगा. एक तरह से संजय राउत ये कह रहे हैं कि भले ही कांग्रेस को ज्‍यादा सीटें मिलें और नाना पटोले सीएम बनने की इच्‍छा रखते रहें लेकिन उद्धव ठाकरे इस बात को स्‍वीकार नहीं करेंगे. 
उद्धव की पार्टी का अपना तर्क है. उनको लगता है कि एमवीए में सबसे बड़ा और स्‍वीकार्य चेहरा उद्धव ही हो सकते हैं. गठबंधन सरकार चलाने के लिए उद्धव ठाकरे की जरूरत है. वह पहले भी सीएम रह चुके हैं. कोरोना काल में उनके कार्यों की आज भी तारीफ होती है. पूरे महाराष्‍ट्र में उनकी अपील है. लिहाजा दावा उद्धव का बनता है. उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि महाराष्‍ट्र चुनाव से पहले उद्धव ने दिल्‍ली का दौरा किया था और सोनिया गांधी और शरद पवार से मुलाकात को इस नजरिए से देखा गया कि वो चाहते थे कि चुनाव में उनको सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्‍ट किया जाए. लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्‍होंने एमवीए से कहा कि जिसको भी चाहें सीएम प्रोजेक्‍ट करें और हम सपोर्ट करेंगे. लेकिन नफा-नुकसान को देखते हुए एमवीए ने चुनाव तक मौन साधना ही उचित समझा.
EXIT POLL तो हो गए, फलोदी के सट्टा बाजार के अनुमान ने सबको चौंकाया
महायुति का सवाल
कुछ इसी तरह के सवाल से महायुति (बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी) को भी जूझना है. राज्‍य की 288 में से 147 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा है. जाहिर है कि सत्‍ता में यदि दोबारा वापसी हुई तो सबसे ज्‍यादा सीटें बीजेपी ही जीतेगी. यानी यदि महायुति की सरकार बनती है तो सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण बीजेपी की सीएम कुर्सी पर स्‍वाभाविक दावेदारी बनती है और देवेंद्र फडणवीस बीजेपी आलाकमान की पहली पसंद हो भी सकते हैं. अमित शाह ने चुनावी रैली में ये बात कही भी कि बीजेपी को जिताना है और देवेंद्र फडणवीस को जिताना है. उसके बाद से ही ये सवाल पुख्‍तातौर पर उठ रहा है कि यदि जनादेश में बीजेपी को सबसे ज्‍यादा सीटें मिलती है तो बीजेपी उस जनादेश  के आदर की बात कहकर सीएम की कुर्सी पर अपनी दावेदारी कर सकती है. 
उस स्थिति में क्‍या एकनाथ शिंदे अपनी सीएम कुर्सी छोड़ने पर सहमत होंगे? उनकी शिवसेना की तरफ से क्‍या ये संदेश नहीं दिया जाएगा कि भले ही उनकी पार्टी ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक तरह से देखा जाए तो मुख्‍यमंत्री होने के नाते महायुति की तरफ से चेहरा तो चुनाव में वही थे. इसलिए उनकी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी जानी चाहिए. ऐसी मांग और दबाव शिवसेना की तरफ से स्‍वाभाविक है.
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?
ये सवाल चुनाव में भी उठते रहे हैं लेकिन दोनों ही गठबंधनों ने चुनाव के बाद की बात कहकर चतुराई से इसको टाल दिया था लेकिन अब इस सवाल से सामना करने का वक्‍त आ गया है. इसलिए ही तो वोटिंग के तत्‍काल बाद कांग्रेस के प्रदेश अध्‍यक्ष नाना पटोले ने एमवीए की जीत को लेकर आशा व्‍यक्‍त करते हुए कह दिया कि कांग्रेस के नेतृत्‍व में महाविकास अघाड़ी की सरकार बनने जा रही है. दरअसल उनका आधार ये है कि एमवीए की तरफ से कांग्रेस सबसे ज्‍यादा 105 सीटों पर चुनाव लड़ी थी इसलिए उनका अनुमान है कि यदि एमवीए को बढ़त मिलती है तो सबसे ज्‍यादा सीटें कांग्रेस ही जीतेगी. अब यदि सरकार एमवीए की बनती है तो सबसे ज्‍यादा सीटें पाने की स्थिति में मुख्‍यमंत्री पद कांग्रेस को मिलना चाहिए. ये बात भी किसी से छिपी नहीं है कि नाना पटोले भी सीएम बनने की इच्‍छा रखते हैं.
उनकी ये बात इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि चुनाव से पहले शरद पवार भी कहते रहे हैं कि सीएम को लेकर फॉर्मूला ये बन सकता है कि सबसे अधिक सीटें जीतने वाले दल को सीएम की कुर्सी मिलनी चाहिए. लेकिन ये बात क्‍या उद्धव ठाकरे की शिवसेना स्‍वीकार करेगी? तभी तो नाना पटोले की बात को उद्धव के विश्‍वस्‍त संजय राउत ने काट दिया. उन्‍होंने साफतौर पर पटोले की बात को खारिज करते हुए कहा कि हम लोग नहीं मानेंगे. नतीजे हमारे पक्ष में आने की स्थिति में एमवीए की बैठक होगी और उसमें ही तय होगा. एक तरह से संजय राउत ये कह रहे हैं कि भले ही कांग्रेस को ज्‍यादा सीटें मिलें और नाना पटोले सीएम बनने की इच्‍छा रखते रहें लेकिन उद्धव ठाकरे इस बात को स्‍वीकार नहीं करेंगे. 
उद्धव की पार्टी का अपना तर्क है. उनको लगता है कि एमवीए में सबसे बड़ा और स्‍वीकार्य चेहरा उद्धव ही हो सकते हैं. गठबंधन सरकार चलाने के लिए उद्धव ठाकरे की जरूरत है. वह पहले भी सीएम रह चुके हैं. कोरोना काल में उनके कार्यों की आज भी तारीफ होती है. पूरे महाराष्‍ट्र में उनकी अपील है. लिहाजा दावा उद्धव का बनता है. उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि महाराष्‍ट्र चुनाव से पहले उद्धव ने दिल्‍ली का दौरा किया था और सोनिया गांधी और शरद पवार से मुलाकात को इस नजरिए से देखा गया कि वो चाहते थे कि चुनाव में उनको सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्‍ट किया जाए. लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्‍होंने एमवीए से कहा कि जिसको भी चाहें सीएम प्रोजेक्‍ट करें और हम सपोर्ट करेंगे. लेकिन नफा-नुकसान को देखते हुए एमवीए ने चुनाव तक मौन साधना ही उचित समझा.
EXIT POLL तो हो गए, फलोदी के सट्टा बाजार के अनुमान ने सबको चौंकाया
महायुति का सवाल
कुछ इसी तरह के सवाल से महायुति (बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी) को भी जूझना है. राज्‍य की 288 में से 147 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा है. जाहिर है कि सत्‍ता में यदि दोबारा वापसी हुई तो सबसे ज्‍यादा सीटें बीजेपी ही जीतेगी. यानी यदि महायुति की सरकार बनती है तो सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण बीजेपी की सीएम कुर्सी पर स्‍वाभाविक दावेदारी बनती है और देवेंद्र फडणवीस बीजेपी आलाकमान की पहली पसंद हो भी सकते हैं. अमित शाह ने चुनावी रैली में ये बात कही भी कि बीजेपी को जिताना है और देवेंद्र फडणवीस को जिताना है. उसके बाद से ही ये सवाल पुख्‍तातौर पर उठ रहा है कि यदि जनादेश में बीजेपी को सबसे ज्‍यादा सीटें मिलती है तो बीजेपी उस जनादेश  के आदर की बात कहकर सीएम की कुर्सी पर अपनी दावेदारी कर सकती है. 
उस स्थिति में क्‍या एकनाथ शिंदे अपनी सीएम कुर्सी छोड़ने पर सहमत होंगे? उनकी शिवसेना की तरफ से क्‍या ये संदेश नहीं दिया जाएगा कि भले ही उनकी पार्टी ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक तरह से देखा जाए तो मुख्‍यमंत्री होने के नाते महायुति की तरफ से चेहरा तो चुनाव में वही थे. इसलिए उनकी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी जानी चाहिए. ऐसी मांग और दबाव शिवसेना की तरफ से स्‍वाभाविक है.
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?
उनकी ये बात इसलिए भी महत्‍वपूर्ण है क्‍योंकि चुनाव से पहले शरद पवार भी कहते रहे हैं कि सीएम को लेकर फॉर्मूला ये बन सकता है कि सबसे अधिक सीटें जीतने वाले दल को सीएम की कुर्सी मिलनी चाहिए. लेकिन ये बात क्‍या उद्धव ठाकरे की शिवसेना स्‍वीकार करेगी? तभी तो नाना पटोले की बात को उद्धव के विश्‍वस्‍त संजय राउत ने काट दिया. उन्‍होंने साफतौर पर पटोले की बात को खारिज करते हुए कहा कि हम लोग नहीं मानेंगे. नतीजे हमारे पक्ष में आने की स्थिति में एमवीए की बैठक होगी और उसमें ही तय होगा. एक तरह से संजय राउत ये कह रहे हैं कि भले ही कांग्रेस को ज्‍यादा सीटें मिलें और नाना पटोले सीएम बनने की इच्‍छा रखते रहें लेकिन उद्धव ठाकरे इस बात को स्‍वीकार नहीं करेंगे. 
उद्धव की पार्टी का अपना तर्क है. उनको लगता है कि एमवीए में सबसे बड़ा और स्‍वीकार्य चेहरा उद्धव ही हो सकते हैं. गठबंधन सरकार चलाने के लिए उद्धव ठाकरे की जरूरत है. वह पहले भी सीएम रह चुके हैं. कोरोना काल में उनके कार्यों की आज भी तारीफ होती है. पूरे महाराष्‍ट्र में उनकी अपील है. लिहाजा दावा उद्धव का बनता है. उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि महाराष्‍ट्र चुनाव से पहले उद्धव ने दिल्‍ली का दौरा किया था और सोनिया गांधी और शरद पवार से मुलाकात को इस नजरिए से देखा गया कि वो चाहते थे कि चुनाव में उनको सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्‍ट किया जाए. लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्‍होंने एमवीए से कहा कि जिसको भी चाहें सीएम प्रोजेक्‍ट करें और हम सपोर्ट करेंगे. लेकिन नफा-नुकसान को देखते हुए एमवीए ने चुनाव तक मौन साधना ही उचित समझा.
EXIT POLL तो हो गए, फलोदी के सट्टा बाजार के अनुमान ने सबको चौंकाया
महायुति का सवाल
कुछ इसी तरह के सवाल से महायुति (बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी) को भी जूझना है. राज्‍य की 288 में से 147 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा है. जाहिर है कि सत्‍ता में यदि दोबारा वापसी हुई तो सबसे ज्‍यादा सीटें बीजेपी ही जीतेगी. यानी यदि महायुति की सरकार बनती है तो सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण बीजेपी की सीएम कुर्सी पर स्‍वाभाविक दावेदारी बनती है और देवेंद्र फडणवीस बीजेपी आलाकमान की पहली पसंद हो भी सकते हैं. अमित शाह ने चुनावी रैली में ये बात कही भी कि बीजेपी को जिताना है और देवेंद्र फडणवीस को जिताना है. उसके बाद से ही ये सवाल पुख्‍तातौर पर उठ रहा है कि यदि जनादेश में बीजेपी को सबसे ज्‍यादा सीटें मिलती है तो बीजेपी उस जनादेश  के आदर की बात कहकर सीएम की कुर्सी पर अपनी दावेदारी कर सकती है. 
उस स्थिति में क्‍या एकनाथ शिंदे अपनी सीएम कुर्सी छोड़ने पर सहमत होंगे? उनकी शिवसेना की तरफ से क्‍या ये संदेश नहीं दिया जाएगा कि भले ही उनकी पार्टी ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक तरह से देखा जाए तो मुख्‍यमंत्री होने के नाते महायुति की तरफ से चेहरा तो चुनाव में वही थे. इसलिए उनकी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी जानी चाहिए. ऐसी मांग और दबाव शिवसेना की तरफ से स्‍वाभाविक है.
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?
उद्धव की पार्टी का अपना तर्क है. उनको लगता है कि एमवीए में सबसे बड़ा और स्‍वीकार्य चेहरा उद्धव ही हो सकते हैं. गठबंधन सरकार चलाने के लिए उद्धव ठाकरे की जरूरत है. वह पहले भी सीएम रह चुके हैं. कोरोना काल में उनके कार्यों की आज भी तारीफ होती है. पूरे महाराष्‍ट्र में उनकी अपील है. लिहाजा दावा उद्धव का बनता है. उनके बारे में ये भी कहा जाता है कि महाराष्‍ट्र चुनाव से पहले उद्धव ने दिल्‍ली का दौरा किया था और सोनिया गांधी और शरद पवार से मुलाकात को इस नजरिए से देखा गया कि वो चाहते थे कि चुनाव में उनको सीएम फेस के रूप में प्रोजेक्‍ट किया जाए. लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्‍होंने एमवीए से कहा कि जिसको भी चाहें सीएम प्रोजेक्‍ट करें और हम सपोर्ट करेंगे. लेकिन नफा-नुकसान को देखते हुए एमवीए ने चुनाव तक मौन साधना ही उचित समझा.
EXIT POLL तो हो गए, फलोदी के सट्टा बाजार के अनुमान ने सबको चौंकाया
महायुति का सवाल
कुछ इसी तरह के सवाल से महायुति (बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी) को भी जूझना है. राज्‍य की 288 में से 147 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा है. जाहिर है कि सत्‍ता में यदि दोबारा वापसी हुई तो सबसे ज्‍यादा सीटें बीजेपी ही जीतेगी. यानी यदि महायुति की सरकार बनती है तो सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण बीजेपी की सीएम कुर्सी पर स्‍वाभाविक दावेदारी बनती है और देवेंद्र फडणवीस बीजेपी आलाकमान की पहली पसंद हो भी सकते हैं. अमित शाह ने चुनावी रैली में ये बात कही भी कि बीजेपी को जिताना है और देवेंद्र फडणवीस को जिताना है. उसके बाद से ही ये सवाल पुख्‍तातौर पर उठ रहा है कि यदि जनादेश में बीजेपी को सबसे ज्‍यादा सीटें मिलती है तो बीजेपी उस जनादेश  के आदर की बात कहकर सीएम की कुर्सी पर अपनी दावेदारी कर सकती है. 
उस स्थिति में क्‍या एकनाथ शिंदे अपनी सीएम कुर्सी छोड़ने पर सहमत होंगे? उनकी शिवसेना की तरफ से क्‍या ये संदेश नहीं दिया जाएगा कि भले ही उनकी पार्टी ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक तरह से देखा जाए तो मुख्‍यमंत्री होने के नाते महायुति की तरफ से चेहरा तो चुनाव में वही थे. इसलिए उनकी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी जानी चाहिए. ऐसी मांग और दबाव शिवसेना की तरफ से स्‍वाभाविक है.
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?
EXIT POLL तो हो गए, फलोदी के सट्टा बाजार के अनुमान ने सबको चौंकाया
महायुति का सवाल
कुछ इसी तरह के सवाल से महायुति (बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी) को भी जूझना है. राज्‍य की 288 में से 147 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा है. जाहिर है कि सत्‍ता में यदि दोबारा वापसी हुई तो सबसे ज्‍यादा सीटें बीजेपी ही जीतेगी. यानी यदि महायुति की सरकार बनती है तो सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण बीजेपी की सीएम कुर्सी पर स्‍वाभाविक दावेदारी बनती है और देवेंद्र फडणवीस बीजेपी आलाकमान की पहली पसंद हो भी सकते हैं. अमित शाह ने चुनावी रैली में ये बात कही भी कि बीजेपी को जिताना है और देवेंद्र फडणवीस को जिताना है. उसके बाद से ही ये सवाल पुख्‍तातौर पर उठ रहा है कि यदि जनादेश में बीजेपी को सबसे ज्‍यादा सीटें मिलती है तो बीजेपी उस जनादेश  के आदर की बात कहकर सीएम की कुर्सी पर अपनी दावेदारी कर सकती है. 
उस स्थिति में क्‍या एकनाथ शिंदे अपनी सीएम कुर्सी छोड़ने पर सहमत होंगे? उनकी शिवसेना की तरफ से क्‍या ये संदेश नहीं दिया जाएगा कि भले ही उनकी पार्टी ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक तरह से देखा जाए तो मुख्‍यमंत्री होने के नाते महायुति की तरफ से चेहरा तो चुनाव में वही थे. इसलिए उनकी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी जानी चाहिए. ऐसी मांग और दबाव शिवसेना की तरफ से स्‍वाभाविक है.
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?
महायुति का सवाल
कुछ इसी तरह के सवाल से महायुति (बीजेपी-शिवसेना-एनसीपी) को भी जूझना है. राज्‍य की 288 में से 147 सीटों पर बीजेपी ने चुनाव लड़ा है. जाहिर है कि सत्‍ता में यदि दोबारा वापसी हुई तो सबसे ज्‍यादा सीटें बीजेपी ही जीतेगी. यानी यदि महायुति की सरकार बनती है तो सबसे बड़े दल के रूप में उभरने के कारण बीजेपी की सीएम कुर्सी पर स्‍वाभाविक दावेदारी बनती है और देवेंद्र फडणवीस बीजेपी आलाकमान की पहली पसंद हो भी सकते हैं. अमित शाह ने चुनावी रैली में ये बात कही भी कि बीजेपी को जिताना है और देवेंद्र फडणवीस को जिताना है. उसके बाद से ही ये सवाल पुख्‍तातौर पर उठ रहा है कि यदि जनादेश में बीजेपी को सबसे ज्‍यादा सीटें मिलती है तो बीजेपी उस जनादेश  के आदर की बात कहकर सीएम की कुर्सी पर अपनी दावेदारी कर सकती है. 
उस स्थिति में क्‍या एकनाथ शिंदे अपनी सीएम कुर्सी छोड़ने पर सहमत होंगे? उनकी शिवसेना की तरफ से क्‍या ये संदेश नहीं दिया जाएगा कि भले ही उनकी पार्टी ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक तरह से देखा जाए तो मुख्‍यमंत्री होने के नाते महायुति की तरफ से चेहरा तो चुनाव में वही थे. इसलिए उनकी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी जानी चाहिए. ऐसी मांग और दबाव शिवसेना की तरफ से स्‍वाभाविक है.
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?
उस स्थिति में क्‍या एकनाथ शिंदे अपनी सीएम कुर्सी छोड़ने पर सहमत होंगे? उनकी शिवसेना की तरफ से क्‍या ये संदेश नहीं दिया जाएगा कि भले ही उनकी पार्टी ने कम सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन एक तरह से देखा जाए तो मुख्‍यमंत्री होने के नाते महायुति की तरफ से चेहरा तो चुनाव में वही थे. इसलिए उनकी मुख्‍यमंत्री की कुर्सी बरकरार रखी जानी चाहिए. ऐसी मांग और दबाव शिवसेना की तरफ से स्‍वाभाविक है.
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?
त्रिशंकु में तो और सांसत होगी…
उपरोक्‍त बातें तो उस स्थिति में हैं कि दोनों गठबंधनों में से चाहें जिसको भी स्‍पष्‍ट बहुमत मिलेगा वहां सीएम पद के लिए खींचतान होनी तय है. लेकिन कुछ एग्जिट पोल में संभावना व्‍यक्‍त की गई है कि किसी को भी बहुमत नहीं मिले तो क्‍या होगा? उस परिस्थिति के सवाल ये होंगे कि क्‍या अजित पवार, महायुति में बने रहेंगे? उद्धव की शिवसेना और एकनाथ शिंदे की शिवसेना क्‍या तब भी दूरी बनाए रखेंगे? शरद पवार का रुख क्‍या होगा? बीजेपी और कांग्रेस तो चलिए अपनी स्‍पष्‍ट राजनीतिक धाराओं के कारण अपनी जगहों पर ही रहेंगे लेकिन कौन सा क्षेत्रीय क्षत्रप 23 नवंबर को नतीजे आने के बाद किस कैंप की तरफ मूव कर जाएगा ये देखना अभी बाकी है?

Kerala Lottery Result
Tops