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SC On Gyanvapi Mosque: ज्ञानवापी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता ‘अदालत में सबूतों पर आधारित होगी कार्रवाई’

ज्ञानवापी मस्जिद की कानूनी स्थिति पर सुप्रीम कोर्ट का रूख

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में कई बदलते मोड़ आए हैं, और मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर एक महत्वपूर्ण सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विध्वंस और अतिक्रमण विरोधी अभियान को लेकर उसके निर्देश सभी धर्मों और समुदायों के लिए समान होंगे। “हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं और हमारा कानून सभी के लिए समान है,” कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए कहा। यह बात तब सामने आई जब मुस्लिम पक्ष ने वाद का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।

बुलडोजर कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट का तगड़ा निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि ‘बुलडोजर जस्टिस’ के मामले में अवमानना करने वालों से मुआवजा वसूला जाएगा। कोर्ट ने निर्देश दिया कि अगर कानून के मुताबिक एक्शन नहीं पाया गया तो पीड़ितों की संपत्ति वापस की जाएगी और इसका मुआवजा दोषी अधिकारियों से वसूला जाएगा। कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देशों को और स्पष्ट करते हुए कहा कि चाहे वह मस्जिद हो या मंदिर, अवैध अतिक्रमण को हटाना सही होगा क्योंकि सार्वजनिक सुरक्षा सबसे पहले है।

सार्वजनिक मार्गों पर धार्मिक संरचनाओं का भविष्य

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में स्पष्ट किया कि “सड़क के बीच में कोई धार्मिक संरचना चाहे वह गुरुद्वारा हो, दरगाह हो या मंदिर, यह जनता की राह में बाधा नहीं बन सकती।” सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, “हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि संपत्ति ध्वस्त किए जाने का आधार यह नहीं हो सकता कि कोई व्यक्ति आरोपी या दोषी है।” जस्टिस गवई ने मुस्कुराते हुए कहा कि जब वे बॉम्बे में थे, तब उन्होंने खुद एक फुटपाथ पर अवैध अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे।

ज्ञानवापी मस्जिद मामले में राज्यों का पक्ष

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार की ओर से पेश होते हुए कहा कि एक विशेष समुदाय के खिलाफ बुलडोजर कार्रवाई किए जाने के आरोप लगे हैं। इस पर जस्टिस गवई ने कहा, “हम एक धर्मनिरपेक्ष देश हैं। बहुत सारी चीजों पर ध्यान दिया गया है। अगर कोई आदमी किसी अपराध में दोषी है तो यह बुलडोजर एक्शन का आधार नहीं हो सकता।” जस्टिस विश्वनाथन ने भी ऑनलाइन पोर्टल बनाने और नोटिस और एक्शन को डिजिटलाइज करने का सुझाव दिया।

पिछली सुनवाइयाँ और कोर्ट के निर्देश

इससे पहले, 17 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उनकी इजाजत के बगैर एक अक्टूबर तक आरोपियों समेत अन्य लोगों की संपत्तियों को नहीं गिराया जाएगा। वहीं, 12 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन को लेकर टिप्पणी की थी कि यह देश के कानूनों पर ही बुलडोजर चलाने जैसा है। कोर्ट ने 2 सितंबर को भी असंतोष व्यक्त किया था कि बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना बुलडोजर एक्शन नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह समझा जा सकता है कि न्यायपालिका के पास एक कानूनी प्रक्रिया का मजबूत आधार है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

धर्मनिरपेक्षता और न्याय की मूल बातें

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर धर्मनिरपेक्षता पर जोर देते हुए कहा कि न्याय सभी के लिए समान होना चाहिए। जस्टिस गवई ने कहा, “जब मैं बॉम्बे में था, तब मैंने खुद एक फुटपाथ पर अवैध अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए थे। हम अदालतों को यह निर्देश देंगे कि जब अवैध अतिक्रमण के मामले में सुनवाई कर रहे हों तो ध्यान रखें।”

भविष्य के लिए सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि सभी संबंधित पक्ष एक साथ सुझाव देंगे तो हम पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी कर सकते हैं। इस दृष्टिकोण से न्यायपालिका एक विशेष निर्देश को ध्यान में रखते हुए समान न्याय सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक संरचना तैयार करने के पक्ष में है।

हमें यह भी समझना चाहिए कि यह मामला केवल एक धर्म या समुदाय के लिए नहीं बल्कि सभी नागरिकों और उनके अधिकारों के लिए महत्वपूर्ण है। न्यायपालिका का उद्देश्य सदैव न्याय और समानता को प्रमोट करना होता है, और इसी उद्देश्य के तहत सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिशा-निर्देश जारी किए हैं।

इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में देश की धार्मिक संरचनाओं, सार्वजनिक स्थल और अतिक्रमण के मामलों में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। कोर्ट की गाइडलाइनें और दिशा-निर्देश सभी पक्षों के लिए एक निर्धारित और समान मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

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