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Supreme Court News: IIT एडमिशन मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई मजदूर के बेटे के हक में बड़ा फैसला

मजदूर के बेटे ने क्लियर किया आईआईटी का एग्जाम

बार एंड बेच वेबसाइट की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक दिहाड़ी मजदूर के बेटे की अर्जी पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड की अध्यक्षता वाली पीठ के सामने याचिकाकर्ता ने बताया कि वह उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले का रहने वाला है. उसके पिता दिहाड़ी मजदूर का काम करते हैं. यह खबर देशभर में चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि युवक ने आईआईटी एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर लिया था, जिसके बाद उसे झारखंड के आईआईटी धनबाद में सीट अलॉट की गई.

फीस का इंतजाम न कर पाने से कैंसल हो गई सीट

छात्र ने अदालत को बताया कि उसे संस्थान में फीस के लिए 17 हजार 500 रुपये देने थे, लेकिन उसके पिता इस फीस का इंतजाम नहीं कर पाए. सिस्टम में तकनीकी खराबी और फीस का इंतजाम न कर पाने की वजह से 24 जून को एडमिशन लिस्ट से उसका नाम काट दिया गया. इसके बाद उसने झारखंड में कानूनी सेवा प्राधिकरण से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वहां से कोई मदद नहीं मिल सकी.

झारखंड कानूनी प्राधिकरण ने मदद से खड़े कर दिए हाथ

याचिकाकर्ता के मुताबिक, प्राधिकरण ने बताया कि चूंकि परीक्षा आईआईटी मद्रास ने आयोजित करवाई थी, इसलिए वह वहीं पर जाकर याचिका दायर करे. झारखंड से चेन्नई जाकर कोर्ट में अर्जी दायर करना उसके बस के बाहर था. उसके पास न तो इतने पैसे थे और न ही समय बचा था, इसलिए वह चाहकर भी अपने लिए कुछ नहीं कर सका.

चीफ जस्टिस बोले- चिंता मत करो, हम कुछ करते हैं

याचिका दायर करने वाले छात्र की दास्तान सुनकर चीफ जस्टिस चंद्रचूड ने उससे सहानुभूति जताई. चीफ जस्टिस ने कहा कि उसकी आईआईटी की कक्षाएं 3 महीने पहले शुरू हो चुकी हैं, लेकिन वह चिंता न करे. इस बारे में वे कुछ करते हैं. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता की सामाजिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए, हम नोटिस जारी करना और उसके प्रवेश का ध्यान रखना उचित समझते हैं. अब इस मामले की अगली सुनवाई सोमवार को होगी.

मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई ने न केवल उस छात्र को नई उम्मीद दी है बल्कि ऐसे कई विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनाई है जो आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद उच्च शिक्षा पाने का सपना देख रहे हैं. चीफ जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि किसी भी छात्र का भविष्य वित्तीय समस्याओं की वजह से दांव पर नहीं लगना चाहिए. छात्र की इस जटिल स्थिति को समझते हुए उन्होंने तुरंत प्रभाव से इस मामले को जल्द हल करने की दिशा में कदम उठाने का आश्वासन दिया.

समाज में एक नई दिशा की उम्मीद

इस घटना ने समाज में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के संघर्ष पर चर्चा को पुनः जीवित किया है. विशेष रूप से गरीब और पिछड़े हुए वर्गों के छात्रों के लिए यह मामला एक उदाहरण बन सकता है. समाज को यह समझना होगा कि आर्थिक स्थिति कभी भी शिक्षा के मार्ग में बाधा नहीं बननी चाहिए. सरकार और संस्थानों को ऐसी स्थिति में छात्रों की सहायता के लिए ठोस कदम उठाने पर विचार करना आवश्यक है.

सपनों को हकीकत में बदलने की कहानी

युवक की कहानी हमें यह सिखाती है कि कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय से किसी भी लक्ष्य को पाया जा सकता है. हालांकि आर्थिक परिस्थिति ने उसके सफर को मुश्किल जरूर बना दिया, लेकिन उसके मेहनत और समर्पण ने उसे आईआईटी तक पहुंचाया. सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने उसके सपनों को पंख दिए हैं और यह साबित कर दिया है कि इरादे मजबूत हों तो कोई भी बाधा रास्ते में नहीं आ सकती.

न्याय व्यवस्था में बढ़ता विश्वास

इस पूरे प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट की तत्परता ने न्याय व्यवस्था के प्रति आम जनता का विश्वास बढ़ाया है. इस प्रकार के फैसले यह संकेत देते हैं कि न्यायपालिका संवेदनशील मुद्दों को गंभीरता से लेते हुए उचित निर्णय लेती है, जो समाज में सच्चाई और न्याय के प्रति विश्वास को मजबूत करता है.

इस मामले की अगली सुनवाई अब सोमवार को होगी, जिसमें छात्र की Entry सुनिश्चित करने के संबंध में अंतिम निर्णय लिया जाएगा. यह मामला न्याय और सहानुभूति का ज्वलंत उदाहरण बन चुका है, जिससे अन्य छात्रों के लिए भी उम्मीद की एक किरण दिखाई देती है. न्याय की इसणींदगी में अब हर कोई सहानुभूति और उम्मीद से भरा हुआ है.

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