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UP Bypolls: सपा-कांग्रेस में खटास उपचुनाव में बड़ा दांव

उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया मोड़

उत्तर प्रदेश की राजनीति में हरियाणा विधानसभा चुनाव परिणाम ने नया मोड़ ला दिया है। कांग्रेस की हार के बाद समीकरण तेजी से बदल रहे हैं और समाजवादी पार्टी (सपा) ने बिना किसी औपचारिक समझौते के उपचुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर सभी को चौंका दिया है। सपा ने न केवल करहल विधानसभा सीट से तेजप्रताप यादव को उम्मीदवार बनाया है, बल्कि इसके साथ ही सीसीमऊ, फूलपुर, मिल्कीपुर, कटेहरी और मझंवा से भी अपने उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं।

कांग्रेस-सपा गठबंधन में खटास – सीट शेयरिंग का संकट

हरियाणा के चुनावी नतीजों ने कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के मद्देनजर आक्रामक रणनीति अपनाने पर मजबूर कर दिया था। इसी बीच सपा ने कांग्रेस को करारा झटका देते हुए गठबंधन और सीट शेयरिंग के बिना ही अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। सूत्रों की मानें तो सपा अब कांग्रेस के साथ सिर्फ फूलपुर सीट पर ही समझौता करने की सोच रही है। इससे यह सवाल उठ गया है कि क्या अखिलेश यादव और राहुल गांधी की दोस्ती टूटने के कगार पर है?

सपा के उम्मीदवारों की घोषणा

समाजवादी पार्टी ने उपचुनावों के लिए उसके 6 प्रत्याशियों का चुनाव कर लिया है। करहल से तेजप्रताप यादव तो पहले से ही चर्चाओं में थे, लेकिन सपा ने बाकियों के नामों से भी सबको वाकिफ करवा दिया है। जहाँ सीसीमऊ से नसीम सोलंकी, फूलपुर से मुस्तफा सिद्दीकी, मिल्कीपुर से अजीत प्रसाद, कटेहरी से शोभावी वर्मा और मझंवा से ज्योति बिंद को मैदान में उतारा गया है।

कांग्रेस के दावे का असर

उपचुनावों के लिए कांग्रेस ने 10 में से 5 सीटों पर दावा किया था, लेकिन सपा की आनन-फानन में की गई घोषणा ने कांग्रेस के सपनों पर पानी फेर दिया है। कांग्रेस अब केवल फूलपुर सीट पर ही अपने खिलाड़ी उतारने पर विचार कर रही है। इस सभी घटनाक्रम के बीच, गठबंधन का महत्व और सीट शेयरिंग को लेकर चर्चाएँ जोर पकड़ रही हैं।

क्या सपा मान जाएगी कांग्रेस की बात?

लोकसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन के बाद पहली बार थम्स-अप पार्टी के इस कदम ने कांग्रेस को बैकफुट पर ला खड़ा किया है। इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA Alliance) में कांग्रेस की आलोचना का सामना कर रही है, जबकि सपा को इसकी परवाह नहीं है। अब यह देखना रोमांचक होगा कि ये दोनों पार्टियाँ उपचुनावों के लिए किस तरह से रणनीतियाँ बनाती हैं।

क्या टूट जाएगी यूपी की दोस्ती?

राजनीति में सहयोगी पार्टियों के बीच तालमेल की कमी अक्सर नई रणनीतियों और समीकरणों को जन्म देती है। यूपी की इस नई राजनीतिक स्थिति में, अखिलेश और राहुल की दोस्ती आखिरकार कितनी मजबूत है, यह उपचुनावों के परिणाम ही बताएंगे।

राजनीतिक विश्लेषण और संभावनाएं

उत्तर प्रदेश के उपचुनावों में सपा की इस घोषणा ने भाजपा के लिए अवसर का द्वार खोला है। भाजपा कितनी सीटें जीतेगी, इसकी चर्चा भी जोर पकड़ रही है। एक AI सर्वेक्षण में पार्टी को बढ़त मिलने की उम्मीद जताई गई है। आगामी दिनों में सपा और कांग्रेस के बीच हुए इस संघर्ष का असर यूपी के चुनावी परिदृश्य पर कैसे पड़ेगा, यह भविष्य की राजनीति तय करेगी।

निर्णायक मोड़ पर खड़े इस राजनीतिक घटनाक्रम ने दर्शाया है कि राजनीतिक समझौतों की परिभाषा बदल सकती है और दोस्ती तथा गठबंधन केवल कागजों तक ही सीमित नहीं रह सकते। सपा और कांग्रेस के बीच उपजी इस खटास का हल क्या निकलता है, यह देखना दिलचस्प रहेगा, और यह स्थिति आगामी विधानसभा चुनावों की दिशा भी तय कर सकती है।

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