शिव के अनन्य भक्त अघोरी
अघोरी साधना की विचित्रता और रहस्यमयता हमेशा से ही मानव मन को आकर्षित करती आई है। अघोरी जीवन के सबसे कठिन और सघन पथ पर चलने वाले साधक होते हैं, जिनकी पूजा का केंद्र भगवान शिव होते हैं। वे शिव को भैरव के रूप में मानते हैं और अद्वैतवादी मान्यताओं पर चलते हुए जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति अर्थात मोक्ष की कामना करते हैं। अघोर पंथी अंधकार से प्रकाश की ओर और आत्म-बोध की दिशा में अग्रसर रहते हैं।
अघोर पंथ के प्रणेता
अघोर पंथ की स्थापना और प्रचार-प्रसार में जिनका नाम सबसे ऊपर आता है, वह हैं बाबा किनाराम। अवधूत भगवान दत्तात्रेय के बाद अघोराचार्य बाबा किनाराम को अघोर शास्त्र का एक प्रमुख गुरु माना जाता है। बाबा किनाराम का जन्म 17वीं शताब्दी में उत्तर प्रदेश के चन्दौली जनपद में हुआ था।
बाबा किनाराम की असाधारण जीवनी
बाबा किनाराम ने 150 वर्ष की आयु जीवन जीकर मानवता और आध्यात्मिक शिक्षाओं की एक दृष्टांती कहानी प्रस्तुत की। उनकी असाधारण कर्मभूमि वाराणसी रही, जहाँ उन्होंने अनेक रचनाएँ कीं और अघोर पंथ की गहन समझ को लोकप्रिय बनाया। कहा जाता है कि उनके जन्म के बाद वे न तो रोए थे और न ही तीन दिनों तक माँ का दूध पिया था।
सामाजिक कल्याण के लिए समर्पित
बाबा किनाराम ने अपनी सामाजिक कल्याण की यात्रा बलूचिस्तान के ल्यारी जिले में हिंगलाज माता के आशीर्वाद से प्रारंभ की जो अघोरा की देवी मानी जाती हैं। उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु, बाबा कालूराम से शिक्षा ग्रहण की, जिन्होंने उन्हें अघोर पंथ की गहराईयों में प्रवेश दिलाया।
बाबा किनाराम की तपोभूमि और रचनाएँ
बाबा किनाराम ने अपनी तपस्या के केंद्र के रूप में वाराणसी को चुना और वहाँ अघोराचार की प्राचीन परंपरा को संजोकर रखा। उनके द्वारा तपस्या की गई स्थानों में क्रिंग-कुंड भी शामिल है जो आज भी वाराणसी में स्थित है। उनकी लिखी हुई कृतियों में ‘रामगीता’, ‘विवेकसार’, ‘रामरसाल’ और ‘उन्मुनिराम’ शामिल हैं जिनमें अघोर के सिद्धान्तों का वर्णन है।
अघोरी सिद्धियाँ और विशेषताएँ
बाबा किनाराम के बारे में कई चमत्कारिक कहानियाँ प्रचलित हैं। उन्हें खड़ाऊ पहनकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने की सिद्धि के लिए जाना जाता है। साथ ही अघोरी श्मशान में निवास करने वाले और विनाश के देवता शिव की पूजा करने वाले माने जाते हैं। अघोर परंपराएँ सब कुछ सुंदर और देवत्व से भरा मानकर चलती हैं।
Disclaimer: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। इसकी पुष्टि के लिए स्रोत उपलब्ध नहीं हैं। इसे पूर्ण सत्य के रूप में ग्रहण न करें। यहाँ प्रस्तुत सारी सामग्री प्रामाणिक इतिहास या तथ्यों पर आधारित नहीं हो सकती।