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फाल्गुन मास की संकष्टी चतुर्थी: जानिए कब है गणपति पूजा का शुभ समय और महत्व

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संकष्टी चतुर्थी का पर्व और इसकी तिथि

हिंदू धर्म में प्रत्येक माह की चतुर्थी तिथि का विशेष महत्व होता है और यह तिथि भगवान गणेश जी को समर्पित मानी जाती है। विशेष रूप से, फाल्गुन मास की संकष्टी चतुर्थी को धार्मिक रूप से बहुत ही अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस वर्ष फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 28 फरवरी को दोपहर 1:53 बजे आरंभ होकर 29 फरवरी को सुबह 4:18 बजे समाप्त होगी। यह समय संकष्टी चतुर्थी के लिए पवित्र माना जाता है और इस दौरान श्रद्धालु विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करते हैं।

गणपति पूजा के शुभ मुहूर्त

फाल्गुन संकष्टी चतुर्थी के पूजन के लिए दो शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:

1. प्रातःकाल का मुहूर्त: सुबह 6:48 बजे से 9:41 बजे तक, इस समय के दौरान भक्तगण भगवान गणेश की पूजा कर सकते हैं।
2. सायंकालीन मुहूर्त: सांय 4:53 बजे से 6:20 बजे तक, इस समयावधि में भी भगवान गणेश की आराधना की जाती है।

इसके अतिरिक्त, 28 फरवरी को चंद्रोदय का समय रात्रि 9:42 बजे है। इस समय पर चंद्रमा के दर्शन करना और उसकी भी पूजा करना अनिवार्य माना जाता है। पूजा के दौरान ‘गणेश चालीसा’ और ‘गणेश आरती’ का पाठ भी किया जाता है।

संकष्टी चतुर्थी का धार्मिक महत्व

धार्मिक कथाओं के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी का महत्व बहुत गहरा है। एक समय में जब माता पार्वती भगवान शंकर से नाराज़ हो गईं थीं, तब भगवान शिव ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए यह व्रत रखा था। माता पार्वती के प्रसन्न हो जाने पर वह शिवलोक वापस आ गईं। क्योंकि यह व्रत माता पार्वती के साथ-साथ गणेश जी को भी प्रिय है, इसलिए इसे ‘द्विजप्रिया चतुर्थी’ के नाम से भी जाना जाता है। जो व्यक्ति इस दिन गौरी-गणेश की आराधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।

संकष्टी चतुर्थी के इस पवित्र पर्व पर, भक्तों द्वारा विशेष रूप से उपवास किया जाता है और शाम को चाँद के दर्शन करने के पश्चात् पारण किया जाता है। इस उपवास का उद्देश्य न केवल भौतिक लाभ की प्राप्ति होता है, बल्कि यह हमारे अंतर्मन को शुद्ध करने और आत्मिक उन्नति के लिए भी महत्वपूर्ण है।

समाज में इस पर्व को मनाने का एक बड़ा उद्देश्य एकता और भाईचारे को बढ़ावा देना भी है, क्योंकि इस दिन समाज के सभी वर्गों के लोग मिलकर उत्सव मनाते हैं और साझा प्रार्थना में भाग लेते हैं। चाहे गणपति मंदिर हो या घरों में स्थापित गणपति की प्रतिमा, हर जगह आराधना के विशेष भजन और कीर्तन किए जाते हैं।

संकष्टी चतुर्थी का उत्सव हमें सिखाता है कि कठिनाइयों और बाधाओं से घबराए बिना, धैर्य और श्रद्धा के साथ मनोकामना की पूर्ति की जा सकती है। गणेश जी को ‘विघ्नहर्ता’ के रूप में जाना जाता है और इस दिन विशेष रूप से पूजन करके हम उनसे सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। यह दिवस हमें जीवन में सकारात्मकता और उम्मीद की किरण देता है और यह दर्शाता है कि सच्चा भक्त हमेशा भगवान के द्वारा सुरक्षित रहता है।

आज के इस लेख के माध्यम से हमने फाल्गुन संकष्टी चतुर्थी की परंपरा, इसके शुभ मुहूर्त, और इसके अध्यात्मिक महत्व को समझा है। आइए हम सभी इस पवित्र दिन को विधिवत रूप से मनाएं और अपने जीवन में सार्थकता और आध्यात्मिक उन्नति की प्राप्ति करें।

Disclaimer: इस लेख में प्रदान की गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। इसके तथ्यों की पुष्टि के लिए धार्मिक ग्रंथों और विद्वानों से परामर्श करना उचित रहेगा।

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