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बसंत पंचमी पर घोषित हुई बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तारीख श्रद्धालुओं में उत्साह

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बद्रीनाथ धाम का महत्वपूर्ण घोषणापत्र

वसंत ऋतु की आगवानी में, इस वर्ष की बसंत पंचमी ने हमें धार्मिक आनंद का उपहार दिया है। इस पवित्र दिवस पर, भू बैकुण्ठ कहलाने वाले बद्रीनाथ धाम में आस्था के महापर्व की तैयारियों का शुभारंभ हो चुका है। नरेंद्र नगर के राज दरबार में, जहाँ हमेशा से धार्मिक और ज्योतिषीय संगीनियां रची जाती हैं, वहाँ इस वर्ष के बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने की तिथि का एलान हो गया। धर्म के इस शुचितम स्थल पर 12 मई को सुबह 6 बजे ब्रह्म मुहूर्त में कपाटों को खोला जाएगा, जिसे अपने कलेंडर में चिन्हित करने के लिए श्रद्धालु बेचैन हैं।

परंपरा और ज्योतिषीय गणित के आधार पर, टिहरी नरेश महाराजा मनुज्येंद्र शाह की कुंडली का विश्लेषण करने के बाद यह तिथि निर्धारित की गई है। और इस श्रेणी में आगे बढ़ते हुए, वैदिक मंत्रोच्चारण से भरे पूजन क्रियाकलापों के बीच आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल ने महाराजा का वर्षफल और ग्रह-नक्षत्रों की दशा का अध्ययन कर इस पावन दिन को चुना।

तेल कलश का महत्व

मंदिर में विधिवत अभिषेक के लिए, श्री डिमरी धार्मिक केंद्रीय पंचायत के पदाधिकारियों ने महत्वपूर्ण तेल कलश को श्री योग बदरी पांडुकेश्वर और श्री नृसिंह मंदिर जोशीमठ में पूजनोपरांत राजमहल को सौंप दिया है। इस पारंपरिक अनुष्ठान का पूरा होना न सिर्फ देव आराधना का प्रतीक है, बल्कि आस्था के उस शाश्वत गाथा का भी, जो हमें लोक के साथ-साथ परलोक की ओर भी संकेतित करती है।

केदारनाथ धाम के कपाटों की गणना

अगर बात करें शिव के धाम केदारनाथ की, तो उसके प्राचीन पंथ के पालन में, शिवरात्रि के पुनीत अवसर पर, श्री ओकारेश्वर मंदिर उखीमठ में, पंचकेदार गद्दस्थल पर पंचांग गणना करके कपाट खुलने की तिथि का निर्धारण किया जाएगा। इस दिन न केवल मंदिर के कपाट खुलने की तिथि, बल्कि श्री केदारनाथ भगवान की पंचमुखी भोगमूर्ति के धाम प्रस्थान की योजना भी तय की जाएगी।

गाढुघड़ा रस्म की भव्यता

25 अप्रैल को, बद्रीनाथ धाम में अभिषेक के लिए उपयोग किए जाने वाले तिल के तेल को पिरोने की एक और प्राचीन और भव्य रस्म गाढुघड़ा का आयोजन किया जाएगा। इस विशेष अनुष्ठान में राज परिवार के सदस्यों समेत बदरीकेदार मंदिर समिति के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे।

इस आध्यात्मिक प्रवाह में, जितनी भक्ति और समर्पण की भावना हमारे महान भारतीय संस्कृति में निहित है, उतनी ही संजीदगी इन अनुष्ठानों की प्रक्रिया में भी देखी जा सकती है। वर्ष दर वर्ष इन पवित्र धामों के कपाट खुलने के साथ यात्री अध्यात्म के सागर में गोते लगाने को आतुर दिखाई देते हैं और इस मनोभाव के चलते इस पूरे महत्वपूर्ण क्रम को समृद्ध और सजीव बनाया जाता है। इस तरह से हमारी विरासतों और उत्सवों का चिर जीवन कितना महत्त्वपूर्ण है, इसे इतिहास के पन्नों से उठाकर हमारे सामने लाना एक अनमोल प्रयास है।

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