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महाभारत की प्रतिज्ञाओं की अनकही व्यथा: अधर्म की ओर पहला कदम

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महाभारत: अराजकता का प्रस्थान बिंदु

भारतीय इतिहास की सबसे वृहद् और मर्मस्पर्शी महाकाव्य ‘महाभारत’ अनेकों रहस्यों और पात्रों की गाथाओं से भरी पड़ी है। इस महाकाव्य ने न केवल युद्ध के कारणों का चित्रण किया है, बल्कि उन मनभेदों और मतभेदों का भी वर्णन किया है जो लंबे समय तक घुलते रहे और आखिर में युद्ध का कारण बने।

महाभारत की कहानी में सत्यवती और राजा शांतनु के प्रेम का एक मुख्य कड़ी है, जहाँ सत्यवती की एक शर्त ने संपूर्ण हस्तिनापुर के भविष्य को ही बदल दिया। सत्यवती की शर्त के अनुसार, केवल उनके पुत्रों को ही हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठाया जाना था, और इस आधार पर भीष्म ने आजीवन ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा धारण की।

प्रतिज्ञाओं की एक शृंखला

भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में महारथियों द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रतिज्ञाएँ की गईं, लेकिन कई बार वे अपनी प्रतिज्ञाओं के पालन में विफल हो गए। महाभारत में अनेक मौकों पर प्रतिज्ञाएँ निभाई गईं और तोड़ी गईं, जो इस महाकाव्य की आत्मा को और भी जटिल बनाता है।

भीष्म की द्वंद्वात्मक प्रतिज्ञाएँ

महाभारत में पितामह भीष्म ने दो प्रमुख प्रतिज्ञाएँ की थीं। पहली, जिसे उन्होंने निभाया वह थी ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा। लेकिन उनकी दूसरी प्रतिज्ञा जिसमें उन्होंने कौरवों के पक्ष में युद्ध में लड़ने और उन्हें विजयी बनाने का वचन दिया था, वह पूरा नहीं कर सके। युद्ध के बीच में ही यह प्रतिज्ञा टूट गई।

गांधारी की अद्वितीय प्रतिज्ञा और उसका टूटना

धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने अपनी आंखों पर पट्टी बाँधने की प्रतिज्ञा की थी, लेकिन अपने पुत्र की मृत्यु को टालने के लिए एक बार उन्होंने अपनी आंखों की पट्टी खोल दी थी। यह भी एक प्रतिज्ञा थी जो अंततः टूट गई।

धर्मराज के झूठ की एक झलक

युधिष्ठिर को धर्मराज के रूप में जाना जाता था, परंतु महाभारत की एक घटना में उन्होंने आधा सत्य बोलकर अपने पात्र पर भी दाग लगा दिया। गुरु द्रोणाचार्य के वध के लिए उन्होंने कहा कि “अश्वत्थामा मारा गया” जब कि सच यह था कि मरने वाला उनका पुत्र नहीं बल्कि एक हाथी था।

कुंती की लुकी-छिपी प्रतिज्ञा

कुंती ने भी प्रतिज्ञा ली थी कि वह अपने पुत्र कर्ण के वंश और उसके जन्म के बारे में किसी को नहीं बताएंगी, लेकिन अर्जुन की रक्षा के लिए उन्हें अंततः इस रहस्य को कर्ण के सामने उजागर करना पड़ा।

भगवान कृष्ण और उनका प्रणोदय

महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने भी प्रतिज्ञा की थी कि वे युद्ध में हथियार नहीं उठाएंगे, लेकिन भीष्म के अग्रसर होने पर और अर्जुन के निष्क्रियता को देखते हुए कृष्ण ने रथ का पहिया उठाकर हथियार उठाने का प्रण तोड़ दिया।

भीम का छल: एक प्रतिज्ञा का अंत

अंत में, भीम ने भी गदा युद्ध के नियमों को तोड़कर अपनी प्रतिज्ञा को भंग किया था, जब उन्होंने दुर्योधन की जांघ पर उस समय हमला किया जब युद्ध के नियमों के अनुसार वह वर्जित था।

महाभारत की ये प्रतिज्ञाएँ, जो धारण की गईं और बाद में तोड़ी गईं, यह दर्शाती हैं कि पात्रों के आदर्शवाद के पीछे उनके मानवीय स्वभाव निहित थे। समय के साथ इन प्रतिज्ञाओं का भंग होना यह संकेत करता है कि किस प्रकार अधर्मिक कार्यों की शुरुआत हुई थी और यह कैसे समग्र युद्ध की दिशा और नियति को प्रभावित करता है। (डिस्क्लेमर: यह लेख लोक परंपरा और महाकाव्य के आख्यानों पर आधारित है।)

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