महाशिवरात्रि का पवित्र पर्व और इसका महत्व
सनातन धर्म में महाशिवरात्रि को महादेव यानि भगवान शिव की आराधना का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है। यह विशेष त्योहार हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। महाशिवरात्रि के पवित्र दिवस पर शिवभक्त भक्ति-भाव से व्रत रखते हैं और भोलेनाथ की अनुपम पूजा-अर्चना करते हैं। यह पर्व प्रेम और भक्ति का अद्भुत संगम है जहां महादेव और देवी पार्वती की पूजा करने से जीवन में सुख-समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन शिव-पार्वती का विवाह हुआ था, इसलिए इस पर्व को विशेष रूप से दंपत्ति जीवन के लिए अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है।
महाशिवरात्रि और भगवान शिव के मूल शिष्य
महाशिवरात्रि के महत्वपूर्ण अवसर पर, हम उस प्राचीन ज्ञान की ओर लौटते हैं जिसे भगवान शिव ने सर्वप्रथम प्रकट किया था। समय के आरम्भ में, भोलेनाथ ने गुरु-शिष्य परंपरा की नींव रखी थी। वे त्रिदेवों में सर्वोच्च माने गए और उन्होनें अपार ज्ञान का आशीर्वाद मानवता को दिया। यह हमारे लिए ज्ञान लेने की महत्वपूर्ण बात है कि बाकी सभी, चाहे वह रावण हो या परशुराम, से पहले सप्तऋषियों को शिव ने अपना ज्ञान दिया था।
सप्तऋषियों ने, जो कि भगवान शिव के मूल शिष्य थे, अपनी गुरु की दिव्य शिक्षाओं को सार्वभौमिक बना दिया। शिवजी से प्राप्त इस अचिंत्य विद्या को उन्होंने चारों दिशाओं में प्रसारित किया। इस प्रचार से दुनियाभर में शैव धर्म, योग का और अध्यात्मिक ज्ञान का विकास हुआ।
सप्तऋषि – शिवज्ञान के प्रथम साधक
सप्तऋषि कौन थे और उनका क्या महत्व है? वास्तविकता में ये विद्वान ऋषि वो थे जिन्होंने सबसे पहले शिव के दर से ज्ञान की गंगा प्राप्त की। सप्तऋषि केवल मानवीय ज्ञान और तत्वों के अज्ञात संरक्षक नहीं थे बल्कि ये उस ज्ञान को जन-जन तक प्रसारित करने के प्रेरणा स्रोत भी थे। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इन्होंने न केवल ज्ञान को संजोया बल्कि उसे विविध रूपों में परिणित करके सात मुख्य शाखाओं में विभाजित किया, जिससे हज़ारों शिष्यों ने लाभ उठाया।
महाशिवरात्रि पूजा विधि और शिवाभिषेक का महत्व
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