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रंगभरी एकादशी 2024: शिव-विष्णु संगति पूजा की विधि और महत्व का पर्व

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रंगभरी एकादशी का धार्मिक महत्व

हिन्दू धर्म में प्रतिवर्ष मनाई जाने वाली अनेक एकादशी की तारीखें अपना विशिष्ट महत्व रखती हैं। ये सभी व्रत एक तरफ जहाँ भक्तों को भगवान विष्णु के निकट ले जाते हैं, वहीं फाल्गुन एकादशी जिसे रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है, वह अपनी अनूठी परंपराओं और उत्सव के लिए विख्यात है। विशेषतः इस एकादशी पर भगवान विष्णु के साथ-साथ महादेव और मां पार्वती की पूजा भी होती है।

इस दिन किये गए व्रत और पूजा अर्चना से भक्तों के जीवन से सभी विघ्न-बाधा का निवारण होता है। यह ऐसा दिन होता है जब महादेव और पार्वती को रंगों से सजाकर पूजने की परंपरा है, जो न केवल उनके भक्तों को आशीर्वादित करती है बल्कि सुख-सौभाग्य और धन की प्राप्ति भी दिलाती है।

रंगभरी एकादशी की पौराणिक कथा

रंगभरी एकादशी की कथा बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है। मान्यताओं के अनुसार, यह वह दिवस है जब भगवान शिव ने माता पार्वती को उनके माता-पिता के घर से गौना कराकर काशी ले आए थे। लोकपरंपराओं के अनुसार उस समय महादेव के भक्तों ने माता पार्वती का स्वागत रंगों और गुलाल के साथ किया था। यहीं से काशी में होली के पर्व की शुरुआत मानी जाती है। तब से यह परंपरा हर साल रंगभरी एकादशी के रूप में मनाई जाती है, और भक्त शिव-पार्वती के साथ-साथ एक-दूसरे को भी रंग लगाते हैं।

रंगभरी एकादशी 2024 की तारीख और शुभ मुहूर्त

इस वर्ष, रंगभरी एकादशी 20 मार्च 2024 को मनाए जाने की सूचना है। इस दिन व्रत और पूजा का विशेष महत्व होता है। शास्त्रों के मुताबिक, इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा भी की जाती है, इसलिए इसे आमलकी एकादशी भी कहा जाता है।

शुभ मुहूर्त के अनुसार, रंगभरी एकादशी का व्रत 20 मार्च को सुबह 12:21 से शुरू होकर अगले दिन सुबह 2:22 तक विधिपूर्वक मनाया जाएगा। पूजा और रंग चढ़ाने का शुभ समय 20 मार्च की सुबह 6:25 से लेकर 9:27 तक बताया गया है।

रंगभरी एकादशी पूजन विधि और उत्सव

रंगभरी एकादशी पर भगवान विष्णु और महादेव की पूजा के लिए भक्त प्रातःकाल स्नान कर सफाई के साथ पूजा स्थल को सजाते हैं। भगवान विष्णु और शिव की प्रतिमाओं को फूलों, रंगों और गुलाल से अलंकृत किया जाता है। भक्तों द्वारा व्रत रखा जाता है और प्रसाद के रूप में फल, मिष्ठान्न और आंवला अर्पित किया जाता है।

रंगभरी एकादशी के अवसर पर कई स्थानों पर रंगोली बनाने का उत्सव भी होता है, और भक्त एक-दूसरे पर रंग और गुलाल उड़ाते हैं, जो होली के आगामी आनंद का संकेत देता है। यह त्योहार भारत के विभिन्न हिस्सों में, विशेषकर काशी और वाराणसी में बहुत ही धूमधाम और हर्षोल्लास से मनाया जाता है।

अस्तु, रंगभरी एकादशी हमें भगवान

की भक्ति के साथ-साथ उनके भक्तों में आपसी प्रेम और भाईचारे का संदेश भी देती है। हमें उम्मीद है कि आपने इस लेख से रंगभरी एकादशी के महत्व, पूजा विधि और उत्सव की जानकारी प्राप्त की होगी और इस वर्ष इस पर्व को और भी श्रद्धा और उमंग के साथ मनाएंगे।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। विशेष जानकारी के लिए संबंधित धर्मिक संस्था और अनुभवी पंडितों का मार्गदर्शन लेना उचित होता है।)

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