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होलिका दहन 2024: अशुभ मानी जाने वाली यह चार श्रेणियां रहें सावधान!

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होलिका दहन का महत्व और पारंपरिक बेला

भारतीय संस्कृति में होलिका दहन का बेहद महत्व है। यह त्योहार आपसी प्रेम और भाईचारे का प्रतीक है और इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। वर्ष 2024 में होलिका दहन 24 मार्च को मनाया जाएगा, जबकि रंगों की होली 25 मार्च को धूमधाम से मनाई जाएगी। होलिका दहन के इस खास अवसर पर कुछ वर्जनाएं और मान्यताएं भी होती हैं, जिनके अनुसार चार विशेष श्रेणियों के लोगों को होलिका दहन की अग्नि नहीं देखनी चाहिए।

गर्भवती महिलाएं और होलिका दहन

पुरानी परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गर्भवती महिलाओं को होलिका दहन के समय दूर रहना चाहिए। कहा जाता है कि इसकी अग्नि का नकारात्मक प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ सकता है। इसलिए, बच्चे की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए गर्भवती महिलाओं को होलिका दहन की अग्नि से दूरी बनाए रखनी चाहिए।

नवजात शिशु और होलिका की आग

होलिका दहन में लोग अपनी बुराइयों और नकारात्मक ऊर्जाओं की बलि चढ़ाते हैं। इस दौरान निकलने वाला धुआं नवजात शिशु के लिए घातक हो सकता है। इसलिए, नवजातों को इस अग्नि से सुरक्षित दूरी पर रखा जाना चाहिए।

नवविवाहित जोड़ों का होलिका दहन से परहेज

विवाह के पश्चात् पहली होली में नवविवाहित दंपतियों को होलिका दहन देखने से बचना चाहिए। मान्यता के अनुसार, होलिका दहन की अग्नि को देखने से इन्हें भविष्य में विभिन्न समस्याओं, अशांति और कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

सास-बहू और होलिका दहन का संयुक्त दर्शन

प्रचलित लोक मान्यता है कि सास और बहू को एक साथ होलिका दहन नहीं देखना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि वे एक साथ अग्नि का दर्शन करती हैं, तो उनके जीवन पर और उनके आपसी रिश्तों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

होलिका दहन क्यों हो सकता है अशुभ?

ये मान्यताएं विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संदर्भों में विकसित हुई हैं। होलिका दहन के दौरान जलने वाले शरीर के प्रतीकात्मक चित्रण के कारण, कई लोगों को लगता है कि इसे देखने से व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रकार, सावधानी बरतने और पुरानी परंपराओं का पालन करने की सलाह दी जाती है।

सूचना और सावधानियां

उपरोक्त बताई गई जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। इसकी सत्यता की पुष्टि के लिए न तो कोई प्रमाणिक शोध है और न ही इसे किसी वैज्ञानिक आधार पर सिद्ध किया गया है। ये परंपराएँ और विश्वास पीढ़ियों से चले आ रहे हैं और बहुत से लोग इन्हें आस्था के नाम पर मानते आए हैं। हालांकि, मानव समाज और सभ्यता की निरंतर विकास यात्रा में इन मान्यताओं पर पुनर्विचार और परिवर्तन की संभावना हो सकती है।

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