अयोध्या: भगवान राम का साक्षी
प्राचीन भारतीय इतिहास में अयोध्या का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इसी अवधपुरी की पावन धरती पर श्रीराम का जन्म हुआ था और उनकी अंतिम यात्रा भी यहीं से आरंभ हुई थी। सरयू नदी की अविरल धारा, जो कि उनके जीवन के प्रत्येक पड़ाव की साक्षी बनी, आज भी इस नगरी में विद्यमान है। श्रीराम ने जन्म-लीला से लेकर वैकुंठ धाम की ओर अपनी यात्रा तक, अयोध्या को ही केंद्र बनाए रखा। इसलिए, यह शहर धार्मिक श्रद्धा के स्थलों में सर्वोच्च माना जाता है।
शासन और समाधि
रावण का वध करने के पश्चात् श्रीराम ने 11 हजार वर्षों तक अयोध्या पर उत्तम राज्य किया। इसी अवधि के समापन पर जब उनके देहत्याग का समय आया, तो वे सरयू तट पर स्थित एक पवित्र घाट – गुप्तार घाट पर पहुँचे। यह वह स्थल है, जहां सभी अयोध्यावासी सहित उनके दिव्य लीलाओं के संगी जीवजंतु भी सम्मिलित हुए। इस क्रम में, श्रीराम के साथ आए देवी-देवता भी थे, जो उनके लीलानुरूप पृथ्वी पर अवतरित हुए थे।
हनुमानजी का अमरत्व
जब जल समाधि लेने का क्षण आया, तो हनुमानजी ने उनसे प्रार्थना की कि वे भी उनके साथ जाना
चाहते हैं। लेकिन श्रीराम ने हनुमानजी को कलयुग तक जीवित रहने का आशीर्वाद दिया, ताकि जन कल्याण के लिए धर्म की रक्षा सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा कि वे धर्म की स्थापना के लिए द्वापर में कृष्ण और कलियुग में कल्कि रूप में पुनः अवतरित होंगे।
भगवान राम का अंतिम दर्शन
श्रीराम ने जैसे ही सरयू नदी में पदार्पण किया, उन्होंने अपने विष्णु रूप का प्रकटीकरण किया। ब्रह्माण्ड के संचालक ब्रह्मा जी ने उन्हें वंदना की और उनके स्वरूप को संजीवनी प्रदान करने का वचन दिया। इसके पश्चात्, श्रीराम ने सरयू में विलीन होकर अपने द्वापर्युगीय लोक की यात्रा प्रारंभ की।
गुप्तार घाट की परंपरा
अयोध्या शहर में राम मंदिर से लगभग 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुप्तार घाट, दर्शनीय स्थलों की कड़ी में एक आवश्यक पड़ाव है। यात्री यहां आकर सरयू स्नान के साथ ही श्रीराम और माता सीता के प्राचीन मंदिर, पंचमुखी हनुमानजी मंदिर, गुप्तहरि मंदिर, मारी माता मंदिर, नरसिम्हा मंदिर व पंचमुखी महादेव मंदिर के दर्शन कर सकते हैं। इस स्थल को धरती का स्वर्ग व विष्णुजी का निवास भी कहा जाता है।
यहां दी गई जानकारी के अनुसार, इसे आस्था, परंपरा और मान्यताओं के संगम का अनुभव करने के लिए एक दिव्य स्थल के रूप में जाना जाता है। लोग यहां दर्शन कर मानते हैं कि उनके जीवन के दुख-दर्द दूर होते हैं और भगवान श्रीराम का आशीर्वाद प्राप्त.